Gold Price :2025 में सोने ने ऐतिहासिक छलांग लगाई है, इसकी कीमतें 3500 प्रति औंस से ऊपर जा सकती हैं। डॉलर और अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड में विश्वास कम होने के कारण, सोना अब सिर्फ़ एक धातु के बजाय ‘वैश्विक मुद्रा’ के रूप में उभर रहा है।
सोने की कीमतों ने साल 2025 में नया रिकॉर्ड बनाया है। मंगलवार को सोने की कीमत 3,500 प्रति औंस को पार कर गई। सवाल यह उठ रहा है कि सोने की मांग इतनी क्यों बढ़ गई है, जबकि अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड (सरकारी बॉन्ड) और डॉलर जैसी पारंपरिक सुरक्षित संपत्तियां बिक रही हैं।
सोना अब सिर्फ़ एक धातु नहीं रह गया है। बदलती दुनिया की अर्थव्यवस्था में यह भरोसे की मुद्रा बन गया है। सीएनबीसी इंटरनेशनल की एक विशेष रिपोर्ट कहती है कि जब अमेरिकी बॉन्ड या डॉलर जैसे पारंपरिक विकल्प अस्थिर हो जाते हैं, तो सोना एक वास्तविक सुरक्षित आश्रय के रूप में उभरता है। रिपोर्ट में ट्रम्प और डॉलर के बारे में कुछ मुख्य कारण बताए गए हैं:
1. ट्रंप के फैसले से भरोसा डगमगाया: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने वैश्विक बाजारों को हिलाकर रख दिया है। अमेरिका ने कई देशों पर ‘पारस्परिक टैरिफ’ लगाया है, जिससे डॉलर और ट्रेजरी बॉन्ड में भरोसा कम हुआ है।
2. डॉलर और ट्रेजरी अब सुरक्षित ठिकाने नहीं रहे: आमतौर पर जब कोई संकट होता है, तो निवेशक डॉलर और सरकारी बॉन्ड (जैसे ट्रेजरी) खरीदते हैं। लेकिन इस बार, दोनों में बिकवाली देखी गई है। यह घरेलू अमेरिकी नीतियों और फेडरल रिजर्व बैंक पर राजनीतिक दबाव के कारण है।
3. सोने में कोई क्रेडिट जोखिम नहीं है: डॉलर या ट्रेजरी बॉन्ड का मूल्य किसी भी सरकार की वित्तीय स्थिति पर निर्भर करता है। लेकिन सोना किसी एक देश से बंधा नहीं है। इसलिए राजनीतिक या आर्थिक अनिश्चितता के समय में इसे सबसे सुरक्षित माना जाता है।
4. मुद्रास्फीति बचाव: टैरिफ नीतियों से अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ने की संभावना है। ऐसी स्थिति में सोना मुद्रास्फीति बचाव का काम करता है।
5. कमज़ोर डॉलर: डॉलर के कमज़ोर होने के कारण, डॉलर में खरीदे जाने वाले सोने और अन्य वस्तुओं की कीमतें अन्य मुद्राओं के निवेशकों के लिए सस्ती हो गईं। इससे सोने की मांग और बढ़ गई।
6. केंद्रीय बैंक खरीद: उभरते बाजारों में केंद्रीय बैंक अब अपने भंडार को डॉलर के बजाय सोने में विविधता दे रहे हैं। यह कदम भविष्य में डॉलर पर निर्भरता कम करने की दिशा में एक कदम है।
7. निवेशकों को डर है कि अमेरिका अपना ‘सुरक्षित पनाहगाह’ का दर्जा खो सकता है: बाजार के अनुसार, ट्रंप की नीतियों से अमेरिका आर्थिक रूप से कमजोर हो सकता है। इससे ट्रेजरी बॉन्ड और डॉलर की विश्वसनीयता में गिरावट आई है।
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