Cheque Bounce : चेक एक ऐसा जरिया है जिससे लाखों का बड़ा भुगतान करना बेहद आसान हो जाता है। वैसे तो आजकल सभी काम ऑनलाइन होने लगे है। लोग यूपीआई के जरिए पेमेंट करने लगे है। अगर आप चेक से कभी पेमेंट (payment options) करते है तो कई बार आपका चेक किसी न किसी वजह से बाउंस हो जाता है। बैंक की भाषा में चेक बाउंस को Dishonored Cheque कहते हैं। ऐसे में आपको कुछ ऐसी बातों के बारें में जरूर पता होना चाहिए जो कि आपको एक बड़ी मुसीबत से बचा सकती है। तो आइए नीचे खबर में जान लें चेक बाउंस होने से जुड़े सारे नियम…
डिजिटलीकरण के युग में आज काफी चीजें आसान हो गई है। इस डिजिटल इरा में पेमेंट (online payment options) का जरिया भी बेहद आसान हो गया है। लोग अब एक क्लीक में पैसे ट्रांसफर करने लगे है। UPI और नेट बैंकिंग के बाद से चेक (cheque uses) का इस्तेमाल सीमित बेशक हो गया है, लेकिन इसकी उपयोगिता अब भी खत्म नहीं हुई है। बड़े वित्तीय लेन-देन आज भी बहुत सारे लोग चेक के जरिए करते हैं।
वहीं तमाम कामों में कई बार कैंसिल चेक की मांग की जाती है। इसके बिना आपका काम नहीं हो पाता। हालांकि चेक से पेमेंट करते समय इसे काफी सावधानी से भरना चाहिए क्योंकि आपकी छोटी सी गलती से चेक बाउंस (cheque bounce) हो सकता है। चेक बाउंस होने का मतलब है कि, उस चेक से जो पैसा जिसे मिलना था, वो नहीं मिल सका।
बता दें कि बैंक की भाषा में चेक बाउंस को Dishonored Cheque कहते हैं। चेक बाउंस आपको बेशक बहुत मामूली सी बात लगती हो, लेकिन Negotiable Instrument Act 1881 की धारा 138 के मुताबिक चेक का बाउंस होना एक दंडनीय अपराध माना गया है। इसके लिए दो साल की सजा और जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है। हालांकि ऐसा नहीं कि चेक बाउंस हुआ और आप पर मुकदमा चला दिया गया। ऐसी स्थिति में बैंक आपको पहले इस गलती को सुधारने का मौका देते हैं। आइए आपको बताते हैं कि किन कारणों से चेक बाउंस होता है, ऐसे में कितना जुर्माना वसूला जाता है और कब मुकदमे की नौबत आती (cheque bounce rules) है।
जान लें चेक बाउंस होने के कारण (reason of cheque bounce)
- अकाउंट में बैलेंस न होना या कम होना
- सिग्नेचर मैच न होना
- शब्द लिखने में गलती
- अकाउंट नंबर में गलती
- ओवर राइटिंग
- चेक की समय सीमा समाप्त होना
- चेक जारी करने वाले का अकाउंट बंद होना
- जाली चेक का संदेह
- चेक पर कंपनी की मुहर न होना आदि
यूजर को चेक बाउंस की गलती सुधारने का मिलता है मौका
अब सवाल उठ रहे होंगे कि चेक बाउंस (cheque bounce punishment) होने पर सीधा क्या कार्रवाही होती है। ऐसा नहीं होता कि आपका चेक बाउंस हुआ और आप पर मुकदमा चला दिया गया। अगर आपका चेक बाउंस हो गया है तो पहले बैंक आपको इसके विषय में सूचना देता है। इसके बाद आपके सामने 3 महीने का समय होता है जिसमें आप दूसरा चेक लेनदार को दे दें। अगर आपका दूसरा चेक भी बाउंस हो जाता है तब लेनदार आप पर कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
बाउंस पर बैंक लगाता है जुर्माना
चेक बाउंस होने पर बैंक जुर्माना वसूलते (penalty on cheque bounce) हैं। जुर्माना उस व्यक्ति को देना पड़ता है जिसने चेक को जारी किया है।
ये जुर्माना वजहों के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है। इसके लिए हर बैंक ने अलग-अलग रकम तय की है। आमतौर पर 150 रुपए से लेकर 750 या 800 रुपए तक जुर्माना वसूला जाता है।
जानिए कब आती है मुकदमे की नौबत
ऐसा नहीं चेक डिसऑनर (cheque dishonor) होते ही भुगतानकर्ता पर मुकदमा चला दिया जाता है। चेक के बाउंस होने पर बैंक की तरफ से पहले लेनदार को एक रसीद दी जाती है, जिसमें चेक बाउंस होने की वजह के बारे में बताया जाता है। इसके बाद लेनदार को 30 दिनों के अंदर देनदार को नोटिस भेज सकता है। अगर नोटिस के 15 दिनों के अंदर देनदार की तरफ से कोई जवाब न आए तो लेनदार कोर्ट जा सकता है। लेनदार मजिस्ट्रेट की अदालत में एक महीने के अंदर शिकायत दर्ज करा सकता है। इसके बाद भी उसे देनदार से रकम न मिले तो वो उस पर केस कर सकता है। दोषी पाए जाने पर 2 साल तक की जेल या जुर्माना या फिर दोनों लगाया जा सकता है।
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