बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्या महागठबंधन से दूरी बढ़ा रहे हैं? बिहार की सियासत में इस बात की जोरों से चर्चा है कि इंडिया अलायंस के सूत्रधार नीतीश कुमार अब अपना विचार बदलते दिख रहेहैं. इन अटकलों को हाल के घटनाक्रम से जोड़कर देखा जा रहा है. यह बात तब और पुख्ता होती दिखी जब यह खबर आई कि नीतीश कुमार राहुल गांधी के बिहार में भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल नहीं होंगे.
मिली जानकारी के अनुसार आगामी 30 जनवरी को नीतीश कुमार पटना में ही एक कार्यक्रम में रहेंगे. इसके एक दिन पहले 29 जनवरी को राहुल गांधी बिहार दौरे पर आएंगे और सीमांचल के पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज जिलों से होते हुए पश्चिम बंगाल में दाखिल हो जाएंगे. खास बात यह कि पहले कांग्रेस ने दावा किया था कि राहुल गांधी की यात्रा में नीतीश कुमार शामिल होंगे. लेकिन, अब जो जानकारी सामने आ रही है उसके अनुसार नीतीश कुमार उस दिन पटना में रहेंगे.
महागठबंधन से दूरी के एक खबर तब भी सामने आई जब कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न दिए जाने की घोषणा हुई. उनकी सोशल मीडिया पोस्ट डिलीट करने और डेढ़ घंटे में पीएम मोदी का नाम जोड़कर डालने के बाद सियासी हलचल अचानक मच गई.
बता दें कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के फैसले को लेकर नीतीश ने एक सोशल मीडिया मंगलवार रात 9.14 मिनट पर साझा की गई थी. इस पोस्ट को उन्होंने डेढ़ घंटे के अंदर डिलीट कर दिया और उसके बाद नई पोस्ट 10.36 मिनट पर साझा की. इनके स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं.
इसके अगले दिन ही कर्पूरी जयंती के अवसर पर जदयू की रैली में सीधे तौर पर नीतीश कुमार ने परिवारवाद को लेकर निशाना साधा. इसको भी महागठबंधन से दूरी को लेकर खबरों को पुष्ट करने वाला बताया जा रहा है. दरअसल, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव, दोनों को ही भाजपा लगातार परिवारवाद को लेकर घेरती रही है. नीतीश कुमार ने यहां राजनीति में परिवारवाद को लेकर निशाना साधा. इसके साथ ही उन्होंने कई ऐसी बातें कहीं, जिससे यही लग रहा है कि उनकी महागठबंधन से दूरी बढ़ती जा रही है.
यही नहीं, इसी कर्परी जयंती रैली में जब गोपालपुर से जदयू विधायक मंच से भाजपा और पीएम मोदी पर निशाना साधने लगे तो उनसे माइक ले ली गई. इसका घटनाक्रम भी बड़ा दिलचस्प रहा. दरअसल, जब गोपाल मंडल बोल रहे थे तो उनके पास एक पर्ची आई. उस पर कुछ संदेश लिखा था, जिसे गोपाल मंडल ने पढ़ा और उनके आक्रामक तेवर ढीले पड़ गए. कहा जा रहा है कि इसमें पीएम मोदी को लेकर कुछ नहीं बोलने का निर्देश था. खैर इस पर्ची का सच तो हम नहीं जानते, लेकिन सियासी गलियारे में यह चर्चा आम है.
इसके पहले मंगलवार को नीतीश कुमार अचानक राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आल्रेकर से मिलने राजभवन पहुंच गए थे. तब अचानक ही सियासी हलचल बढ़ गई थी. उनकी यह मुलाकात करीब 40 मिनट तक चली थी. इस घटनाक्रम ने सियासी कयासों को हवा दे दी थी.
हालांकि बाद में इस मुलाकात को लेकर यह खंडन किया गया कि नीतीश कुमार की यह सियासी मुलाकात थी. इस मीटिंग को औपचारिक बताया गया. लेकिन, गौर करनेवाली बात यह है कि तेजस्वी यादव के साथ कार्यक्रम में शामिल होने के बाद वे अकेले ही राज्यपाल से मिलने पहुंचे थे.
बहरहाल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ‘मन’ में क्या है, यह कोई नहीं जानता है. लेकिन, नीतीश कुमार का जिस प्रकार का राजनीतिक इतिहास रहा है वह चौंकाने वाले रहे हैं. उन्होंने कई बार ‘बड़े कदम’ उठाए हैं. करीब-करीब हर बार उनके इन ‘बड़े फैसलों’ के 15-20 दिन पहले प्रदेश में सियासी हलचल तेज होती रही है. अब आने वाले समय में बिहार की राजनीति में कुछ बड़ा बदलाव हो जाए तो कुछ नहीं कहा जा सकता है.