बिहार के प्राइवेट स्कूलों में 25 प्रतिशत गरीब बच्चों का एडमिशन अगले सत्र से अनिवार्य होगा। शिक्षा के अधिकार के तहत अब गरीब बच्चों को अच्छी शिक्षा के बीच फीस बाधा नहीं बनेगी। सरकार की तरफ से इस अगले सत्र के लिए कुछ बदलाव भी किए गए हैं।
राज्य के निजी विद्यालयों में 25 प्रतिशत गरीब बच्चों का नामांकन अगले सत्र से अनिवार्य होगा। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत यह अनिवार्य व्यवस्था प्री प्राइमरी कक्षा से ही लागू होगा। अब गरीब अभिभावक अपने बच्चों का नामांकन आरक्षण के तहत नर्सरी, एलकेजी में करवा सकेंगे।
नई शिक्षा नीति के तहत सरकार ने अब शिक्षा के अधिकार कानून को निजी विद्यालयों में छह से 14 साल तक के बच्चों का आरक्षित कोटे में नामांकन सुनिश्चित कराने हेतु जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है। अब तक शिक्षा के अधिकार कानून के तहत 25 प्रतिशत आरक्षण का नामांकन छह साल की उम्र में कक्षा एक में होता था, लेकिन अब नर्सरी और एलकेजी में ही नामांकन होगा। इसके लिए सभी जिलों को निजी विद्यालयों की सूची तैयार करने को कहा गया है।
सीट की जानकारी नहीं देता स्कूल प्रबंधन
अभिभावकों का आरोप रहा है कि निजी स्कूल कभी नहीं बताते कि किस क्लास में कितनी सीटें हैं। वे फॉर्म जमा कराने के बाद टेस्ट लेते हैं मगर उसका किस छात्र को कितने अंक मिले और कटऑफ मार्क्स क्या है, इसकी भी जानकारी नहीं देते। उनका आरोप यह भी है कि आर्थिक रूप से संपन्न मगर पढ़ने में कमजोर बच्चों का चयन कर लिया जाता है, क्योंकि उनके अभिभावक डोनेशन के रूप में मोटी रकम देते हैं।
लेकिन, गरीब परिवार के घर के बच्चों का दाखिला यह कहकर नहीं लिया जाता कि वे टेस्ट में पास नहीं हो सके। शिक्षा का अधिकार के तहत 25 फीसद सीटों में किन छात्रों का एडमिशन लिया गया, इसकी भी सूचना प्रकाशित नहीं की जाती।
एडमिशन की प्रक्रिया में स्कूल प्रबंधन पारदर्शिता बरते, इसके लिए अभिभावकों ने कई बार आवाज उठाई, लेकिन उनकी सुनवाई कहीं नहीं हुई। मगर नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद स्कूलों के नामांकन की प्रक्रिया में पारदर्शिता आने की उम्मीद है। इसके लिए सरकार और शिक्षा विभाग की ओर से सभी जिलों के प्रशासन को सख्त हिदायत दी गई है।